मुक़ाम

शोर,शोर से दूर है
सन्नाटे में खामोशी है
चांद के निचे
जगमगाते तारो सा शैहर
खुसपुसाते पत्तो से टकराके गुज़रती हवा
बैठा हुँ लिए साथ
ख़्वाब एक रात पुरानी
ना कोई फ़िकर, ना कोई डर
सिर्फ इन्तज़ार लिए मुकाम की ओर जा रहा हुँ

#नागेन्द्र#प्रेम#स्नेह#ख़ुशी

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